Rahat Indori Shayari in Hindi - Read popular shers by Dr. Rahat Indori Saheb in Hindi. 'Rahat Indori' is one of the popular name in the world of shero - Shayari and Ghazals in Hindi and Urdu.
Rahat Indori Shayari in Hindi |
Rahat Indori Shayari in Hindi
अब हम मकान में ताला लगाने वाले हैं |
पता चला हैं की मेहमान आने वाले हैं ||
आँखों में पानी रखों, होंठो पे चिंगारी रखो |
जिंदा रहना है तो तरकीबे बहुत सारी रखो ||
पता चला हैं की मेहमान आने वाले हैं ||
आँखों में पानी रखों, होंठो पे चिंगारी रखो |
जिंदा रहना है तो तरकीबे बहुत सारी रखो ||
ना त-आरूफ़ ना त-अल्लुक हैं , मगर दिल अक्सर |
नाम सुनता हैं , तुम्हारा तो उछल पड़ता हैं ||
अंदर का ज़हर चूम लिया , धुल के आ गए |
कितने शरीफ़ लोग थे , सब खुल के आ गए ||
दो गज सही ये , मेरी मिलकियत तो हैं |
ऐ मौत तूने मुझे , ज़मीदार कर दिया ||
मुझसे पहले वो किसी और की थी , मगर कुछ शायराना चाहिए था |
चलो माना ये छोटी बात है , पर तुम्हें सब कुछ बताना चाहिए था ||
नाम सुनता हैं , तुम्हारा तो उछल पड़ता हैं ||
अंदर का ज़हर चूम लिया , धुल के आ गए |
कितने शरीफ़ लोग थे , सब खुल के आ गए ||
दो गज सही ये , मेरी मिलकियत तो हैं |
ऐ मौत तूने मुझे , ज़मीदार कर दिया ||
मुझसे पहले वो किसी और की थी , मगर कुछ शायराना चाहिए था |
चलो माना ये छोटी बात है , पर तुम्हें सब कुछ बताना चाहिए था ||
अजनबी ख़्वाहिशें , सीने में दबा भी न सकूँ |
ऐसे ज़िद्दी हैं परिंदे , कि उड़ा भी न सकूँ ||
आँख में पानी रखो , होंटों पे चिंगारी रखो |
ज़िंदा रहना है तो , तरकीबें बहुत सारी रखो ||
रोज़ तारों को नुमाइश में , खलल पड़ता हैं |
चाँद पागल हैं , अंधेरे में निकल पड़ता हैं ||
ऐसे ज़िद्दी हैं परिंदे , कि उड़ा भी न सकूँ ||
आँख में पानी रखो , होंटों पे चिंगारी रखो |
ज़िंदा रहना है तो , तरकीबें बहुत सारी रखो ||
रोज़ तारों को नुमाइश में , खलल पड़ता हैं |
चाँद पागल हैं , अंधेरे में निकल पड़ता हैं ||
You are reading: Rahat Indori Poetry
उसकी याद आई हैं , साँसों ज़रा धीरे चलो |
धड़कनो से भी इबादत में , खलल पड़ता हैं ||
ये हादसा तो किसी दिन , गुज़रने वाला था |
मैं बच भी जाता तो , इक रोज़ मरने वाला था ||
धड़कनो से भी इबादत में , खलल पड़ता हैं ||
ये हादसा तो किसी दिन , गुज़रने वाला था |
मैं बच भी जाता तो , इक रोज़ मरने वाला था ||
जागने की भी, जगाने की भी, आदत हो जाए |
काश तुझको किसी शायर से मोहब्बत हो जाए||
दूर हम कितने दिन से हैं, ये कभी गौर किया |
फिर न कहना जो अमानत में खयानत हो जाए ||
काश तुझको किसी शायर से मोहब्बत हो जाए||
दूर हम कितने दिन से हैं, ये कभी गौर किया |
फिर न कहना जो अमानत में खयानत हो जाए ||
सूरज, सितारे, चाँद मेरे साथ में रहें |
जब तक तुम्हारे हाथ मेरे हाथ में रहें ||
शाखों से टूट जाए वो पत्ते नहीं हैं हम |
आंधी से कोई कह दे की औकात में रहें ||
जब तक तुम्हारे हाथ मेरे हाथ में रहें ||
शाखों से टूट जाए वो पत्ते नहीं हैं हम |
आंधी से कोई कह दे की औकात में रहें ||
गुलाब, ख्वाब, दवा, ज़हर, जाम क्या क्या हैं |
में आ गया हु बता इंतज़ाम क्या क्या हैं ||
फ़क़ीर, शाह, कलंदर, इमाम क्या क्या हैं |
तुझे पता नहीं तेरा गुलाम क्या क्या हैं ||
में आ गया हु बता इंतज़ाम क्या क्या हैं ||
फ़क़ीर, शाह, कलंदर, इमाम क्या क्या हैं |
तुझे पता नहीं तेरा गुलाम क्या क्या हैं ||
You are reading: Rahat Indori ki Shayari
कभी महक की तरह हम गुलों से उड़ते हैं |
कभी धुएं की तरह पर्वतों से उड़ते हैं ||
ये केचियाँ हमें उड़ने से खाक रोकेंगी |
की हम परों से नहीं हौसलों से उड़ते हैं ||
कभी धुएं की तरह पर्वतों से उड़ते हैं ||
ये केचियाँ हमें उड़ने से खाक रोकेंगी |
की हम परों से नहीं हौसलों से उड़ते हैं ||
हर एक हर्फ़ का अंदाज़ बदल रखा हैं |
आज से हमने तेरा नाम ग़ज़ल रखा हैं ||
मैंने शाहों की मोहब्बत का भरम तोड़ दिया |
मेरे कमरे में भी एक “ताजमहल” रखा हैं ||
आज से हमने तेरा नाम ग़ज़ल रखा हैं ||
मैंने शाहों की मोहब्बत का भरम तोड़ दिया |
मेरे कमरे में भी एक “ताजमहल” रखा हैं ||
नए सफ़र का नया इंतज़ाम कह देंगे |
हवा को धुप, चरागों को शाम कह देंगे ||
किसी से हाथ भी छुप कर मिलाइए |
वरना इसे भी मौलवी साहब हराम कह देंगे ||
हवा को धुप, चरागों को शाम कह देंगे ||
किसी से हाथ भी छुप कर मिलाइए |
वरना इसे भी मौलवी साहब हराम कह देंगे ||
जवानिओं में जवानी को धुल करते हैं |
जो लोग भूल नहीं करते, भूल करते हैं ||
अगर अनारकली हैं सबब बगावत का |
सलीम हम तेरी शर्ते कबूल करते हैं ||
जो लोग भूल नहीं करते, भूल करते हैं ||
अगर अनारकली हैं सबब बगावत का |
सलीम हम तेरी शर्ते कबूल करते हैं ||
You are reading: Rahat Indori Sher
तुफानो से आँख मिलाओ, सैलाबों पे वार करो |
मल्लाहो का चक्कर छोड़ो, तैर कर दरिया पार करो ||
फूलो की दुकाने खोलो, खुशबु का व्यापर करो |
इश्क खता हैं, तो ये खता एक बार नहीं, सौ बार करो ||
मल्लाहो का चक्कर छोड़ो, तैर कर दरिया पार करो ||
फूलो की दुकाने खोलो, खुशबु का व्यापर करो |
इश्क खता हैं, तो ये खता एक बार नहीं, सौ बार करो ||
सफ़र की हद है वहां तक की कुछ निशान रहे |
चले चलो की जहाँ तक ये आसमान रहे ||
ये क्या उठाये कदम और आ गयी मंजिल |
मज़ा तो तब है के पैरों में कुछ थकान रहे ||
चले चलो की जहाँ तक ये आसमान रहे ||
ये क्या उठाये कदम और आ गयी मंजिल |
मज़ा तो तब है के पैरों में कुछ थकान रहे ||
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