Sher aur Chuha ki Kahani |
Sher aur Chuha ki Kahani
बहुत समय पहले घने जंगल के बीचों बीच छोटी पहाड़ियों के गुंफामें बब्बर शेर रहता था। जंगल में जानवरों का शिकार करता था, गुम्फा में अपनी शिकार को ले जा कर आनंद के साथ खता था और झरने से पानी पी कर गुजरा करता था। उसी गुम्फा में एक छोटी सी बिल थी। उसमे एक चूहा रहा करता था। बचे कूचे शिकार से मांस चूहा कुतर कुतर के खाया करता था। और इस तरह चूहा अपना पेट रोज भरा करता था।
गर्मियों का वक़्त था, बड़ी मुश्किल से शेर के हाथ कोई शिकार लगा हो। शेर भूक के मारे गुस्से में लाल। वो अपने गुम्फा में सोया हुआ था। तभी चूहा देखा आज भी शेर कोई शिकार लाने में सफल नहीं रहा। चूहा का भी हाल बेहाल था भूक के मारे। वो ठान लिया गुंफे से बाहर निकल कर वो खाने की तलाश कर अपनी भूक मिटाएगा। वो गुम्फा के चाट के नजदीक किनारो पर चुप चाप चल के बहार की और जा रहा था के तभी उसका पैर फिसला और वो शेर के ऊपर जा गिरा। शेर अपने ऊपर कोई बस्तु गिरता देख नींद से जाग जाता है और अपने सामने चूहा को देख गुस्से से गरजता है।
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शेर की गरजना सुन कर चूहा बिलकुल डर जाता है। शेर उसको खाने के लिए आगे बढ़ता है। चूहा तुरंत अपनी बूढी का प्रयोग कर के नतमस्तक हो कर शेर से कहता है के
- "हे जंगल के राजा, ओ बब्बर शेर। इस नादाँ की गुस्ताखी को माफ़ कर दीजिये। में एक पिद्दी सा प्राणी हूँ। आप मुझे खाएंगे भी तो आपका पेट नहीं भरेगा। मुझे जाने दीजिये। में आपके किसी न किसी काम में जरूर आऊंगा। "
ये सुनते ही शेर जोर जोर से है पड़ता है। वो कहता है
-"तू एक छोटा सा जानवर। तू भला मेरे किसी काम में कैसे आ सकता है। तेरा आकर बहुत छोटा है। तू किसी काम का नहीं।"
ये कह कर शेर आगे बढ़ता है। तभी चूहा बोलता है
-"हे राजा। एक बार मेरे ऊपर भरोषा करिये। मुझे जाने दीजिये। में वडा करता हूँ में आपको मददगार साबित होऊंगा। "
शेर रूक जाता है। थोड़ी देर सोचता है और चूहे को जाने देता है। चूहा शेर का सुक्रिया अदा कर वहां से चल देता है।
वक़्त तेजी से बढ़ता है और बसंत आ पहुँचता है। बसंत में जंगल में एक अलग ही चहल पहल है। शेर शिकार के लिए अपने गुम्फा से निकलता है। वो घात लगाए बैठता है अपने शिकार के पास। वो जैसे ही हुम्ला करता है वो एक जाल में फस जाता है। वो वहां से निकल नहीं पाता। वो अपनी पूरी ताक्कत झोंक कर भी विफल रहता है।
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वो जितना ज्यादा कोशिश करता है उतनी ज्यादा थकना सुरु करता है। अंत में गुस्से में जोर जोर से गरजना सुरु कर देता है। इसकी गरज से जंगल के जानवर भाग कर चुप जाते है। जब चूहा यही गरज सुनता है तो वो तुरंत समझ लेता है ये शेर की दहाड़ है और वो जरूर किसी मुसीबत में फंसा हुआ है। वो आवाज़ की और चल देता है और शेर को जाल के अंदर बंधे हुए देखता है। वो शेर को खामोश रहे के लिए कहता है। शेर खामोश रहता है। चूहा अपने नोकीले दांतो से जाल को कुतरना सुरु कर देते हैं। जल्द ही जाल को पूरा काट देता हैं चूहा। शेर जाल से आजाद हो जाता है।
शेर चूहा का शुक्रिया अदा करता है और साथ ही माफ़ी मांगता है के उसने चूहे की काबिलियत को कम आंका था। और उस दिन से चूहा और शेर घने घनिस्ट मित्र बन गए।
Moral: हम कभी भी किसी भी चीज़ की काबिलियत को उसके आकर से मापना नहीं चाहिए।
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